नमस्कार दोस्तों आज की पोस्ट में हम DC Machine की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़िए।
पिछली पोस्ट में हमने Transformer की जानकारी शेयर की थी तो उस आर्टिकल को भी पढ़े।
चलिए आज हम DC Machine क्या हैं इसके प्रकार, कार्य, संरचना, और सिद्धांत की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
DC Machine क्या है
डीसी मशीन का सीधा मतलब होता है। ऐसी मशीन जो सिर्फ डायरेक्ट करंट पर काम करने वाली हो। चाहे वह डीसी मोटर हो या डीसी जनरेटर हो।
डीसी मशीन का प्रयोग स्पेशल स्थानों पर ही किया जाता है। क्योंकि हम लोग आपने दैनिक जीवन में सिर्फ एसी supply पर ही काम करते हैं।
अतः इसको स्पेशली डीसी सप्लाई देना पड़ता है। डीसी मशीन का काम इलेक्ट्रिकल एनर्जी और मैकेनिकल एनर्जी को आपस में conversion करना है।
जब हम डीसी मशीन को एक मोटर के रूप में इस्तेमाल करते हैं और मोटर टर्मिनल पर supply देते हैं। वह मशीन इलेक्ट्रिकल एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी मे बदलता है।
इसी प्रकार यदि हम डीसी मशीन को एक जनरेटर के रूप में इसके shaft को प्राइम मूवर से घुमाते है। तो यह मैकेनिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल एनर्जी मे परिवर्तित करता है।
DC Machine का सिद्धान्त
किसी धारा प्रवाह करते हुए चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तब उस पर एक यांत्रिक बल (mechanical force) कार्य करता है जिसे फ्लेमिंग के बॉये-हाथ के नियम (Fleming’s left hand rule) द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। इस बल के कारण चालक बल की दिशा में गतिशील हो जाता है। यही मोटर का कार्य सिद्धान्त है।
DC Machine के प्रकार
डीसी मशीन में निम्न दो प्रकार के ध्रुव को पढ़ते हैं। जों निम्न है।
- मैग्नेटिक न्यूट्रल एसिक्स (MNA)
- ज्योमेट्रिकल न्यूट्रल एक्सिस (GNA)
1. मैग्नेटिक न्यूट्रल एक्सिस
डीसी मशीन में MNA नेट फील्ड flux के लंबवत होता है। यह MNA machine के लोड के बढ़ने से मशीन के नेट फील्ड flux की स्थिति बदलती है।
इसी कारण MNA की स्थिति भी बदलता रहता है। MNA पर emf हमेशा शून्य रहता है, क्योंकि नेट फिल्ड flux के लंबवत पड़ने वाले चालक मे emf शून्य होता है।
अतः यही कारण है कि मशीन के ब्रश को हमेशा MNA पर ही रखते है। ताकि ब्रश तथा कॉमुटेटर के बीच स्पार्किंग ना हो।
2. ज्योमेट्रिकल न्यूट्रल एक्सिस
GNA मशीन के स्टेटर फिल्ड एक्सिस के लंबवत पड़ने वाला रेखा ही GNA कहलाता है। यह मशीन के हमेशा स्थिर होता है।
DC Machine की संरचना
डीसी मशीन के मुख्य भाग निम्नलिखित है
- क्षेत्र चुम्बक (Field Magnet)
- योक (Yoke)
- आर्मेचर क्रोड (Armature Core)
- आर्मेचर कुण्डली (Armature Winding)
- दिक्परिवर्तक (Commutator)
- बुश (Brush)
- बियरिंग (Bearing)
- स्टेटर (status)
1. क्षेत्र चुम्बक (Field Magnet)
क्षेत्र चुम्बक के तीन भाग होते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं।
- ध्रुव क्रोड
- ध्रुव शू
- क्षेत्र कुण्डली
ध्रुव क्रोड को लोहे व पटलित इस्पात (Either Soft Steel Laminated) से बनाया जाता है परन्तु बड़ी मशीनों के लिए ध्रुव क्रोड व ध्रुव शू दोनों ही प्रटलित इस्पात से बनाए जाते हैं।
पटलित धुव शू का आकार गोल होता है व आर्मेचर के पास होता है। ध्रुव क्रोड व धुव शू का पटलित भाग उस सतह पर होता है जहां पर आर्मेचर घूमता है। धूव शू के दो काम होते हैं।
- चुम्बकीय कुण्डलियों को आधार प्रदान करना
- चुम्बकीय परिपथ का प्रतिष्टम्भ कम करना व शू का अनुप्रस्थ क्षेत्र
अधिक होने के कारण वायु अन्तराल में फ्लक्स को समरूपता से फैलाना
क्षेत्र चुम्बक का ऊपरी भाग जो कि नट बोल्ट की सहायता से योक के साथ कस दिया जाता है। उस क्षेत्र चुम्बक में ध्रुव क्रोड व नीचे का भाग शू कहलाता है।
इसके अन्दर ताम्र के विद्युतरोधित (Insulated) तारों से कुण्डली बनाई जाती है। क्षेत्र कुण्डली को बनाने के लिए पहले ध्रुव क्रोड के आकार का फर्मा बना लिया जाता है। तत्पश्चात् फर्मे की सहायता से क्षेत्र कुण्डलियां बनाकर ध्रुव क्रोड में फंसा दी जाती है।
2. योक (Yoke)
यह मशीन का बाहरी कवच होता है, जो कि गोल आकार का होता है। योक को ढलवां लोहे (Cast Iron) अथवा इस्पात (Cast Steel) व रोल्ड इस्पात (Rolled Steel) से बनाते हैं।
छोटी मशीनों के योक (Yoke) को ढलवां लोहे से व बड़ी मशीनों के योक (Yoke) को ढलवां (Cast) व रोल्ड इस्पात (Rolled Steel) से बनाते है क्योंकि इससे मशीन का भार कम होता है परन्तु बड़ी मशीनों के योक दो भागों में ढाले जाते हैं और दोनों भागों को नट बोल्ट की सहायता से जोड़ देते हैं।
तब यह मशीन के ध्रुव को यान्त्रिक कर उसकी बाहरी क्षति से रक्षा करते हैं। ध्रुव चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टक (Low.Reluctance) का पथ प्रदान करता है। ध्रुव क्रोड को योक के साथ जोड़ा जाता है जिस कारण इसे अन्दर से जोड़ना पड़ता है।
3. आर्मेचर क्रोड (Armature Core)
मशीन का जो भाग घूमता है, उसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर को चालक से बनाते हैं। आर्मेचर क्रोड बेलनाकार आकृति का लगभग 6.35 Mm (1/4 इंच) मोटी सिलिकन इस्पात (Silicon Steel) की वृत्ताकर पटलों का बना होता है।
इसकी परिधि पर चारों और आर्मेचर संवाहक या कुण्डलन (Windings) डालने के लिए खांचे (Slots) काटे जाते हैं जिसकी वजह से पटलों को वार्निश या ऑक्साइड लेपन करके सूखा दिया जाता है और फिर द्रव दाब मशीन (Hydraulic Press Machine) की सहायता से इन्हें बेलनाकार आकृति में बना दिया जाता है।
पटलों को पतला बना कर उन पर वार्निश या ऑक्साइड परत चढ़ाने से भंवर धारा पथ का प्रतिरोध बढ़ जाता है फलस्वरूप भंवर धारा हानि कम हो जाती है।
बड़ी मशीनों के आर्मेचर क्रोड के अक्ष के समानान्तर वायु छिद्र बना होता है, जो कि आर्मेचर शीतलन में सहायता करता है। आर्मेचर क्रोड मुख्यतया अपनी कुण्डलन को अपने अन्दर स्थापित कर लेती है।
जिसकी वजह से आर्मेचर क्रोड अपने चुम्बकीय क्षेत्र में घुमता है, फिर वह इससे गुजरने वाले फ्लक्स को निम्न प्रतिष्टभ का पथ प्रदान कराती है।
4. आर्मेचर कुण्डलन
आर्मेचर कुण्डली एनैमल्ड ताम्र तार (Enamelled Copper Wire) की बनी होती है। ये कुण्डली पहले फर्मे पर लपेट ली जाती है तत्पश्चात् इन्हें ताम्र तार से बने हुए आर्मेचर के खांचों (Slots) में डाल देते हैं।
कुण्डली को आर्मेचर के खांचों में डालने से पहले खांचों में एम्पायर क्लाथ (Empirecloth) ताम्र तार की बनी तथा लेदरॉइड पेपर (Leatheroid Paper) को लगा दिया जाता है।
ताकि कुण्डलन के विद्युतरोधन (Insulation) को कोई हानि न पहुंचे। कुण्डलन को डालने के पश्चात् खांचों की लकड़ी को फन्नियों (Wedges) से बन्द कर दिया जाता है और कुण्डलन के सिरों (Ends) को दिकपरिवर्तक (Commutator) से जोड़ देते अथवा,
यह मशीन का घूमने वाला भाग होता है इसके घूमने से विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है।
आर्मेचर को 0.3mm-0.5mm मोटी सिलिकॉन की पत्तियों को पटलित (lemenate) करके बनाया जाता है पतियों को लेमिनेट करने से भंवर धारा हानियां कम किया जा सकता है आर्मेचर में प्रत्यावर्ती धारा(AC) उत्पन्न होती है जिससे को कम्यूटेटर द्वारा दिष्ट धारा (DC) में बदल दिया जाता है।
5. दिकपरिवर्तक
यह दिष्ट धारा मशीन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है जो प्रत्यावर्ती धारा आर्मेचर में उत्पन्न होती है। उससे हम दिकपरिवर्तक की सहायता से प्रत्यावर्ती धारा से दिष्ट धारा में बदलते हैं।
यह उच्च चालकता (High Conductivity) कार्षित कठोर (Hard Drawn) ताम खण्डों को बना हुआ बेलनाकार आकृति का होता है।
ये ताम्र खण्ड परस्पर अभ्रक (Mica) द्वारा विद्युतरोधित (Insulated) होते हैं और ये ‘V’ आकार के बने होते हैं ताकि अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) के कारण निकल कर वो उड़ ना सकें।
इन ‘V’आकार के खांचों को मेकेनाइट (Mecanite) की वलय द्वारा विद्युतरोधी बनाते हैं। संवाहको को पकड़ने के लिऐ ताम्र के खण्डों के सिरों पर लग्ज (Lugs) लगे होते हैं।
6. बुश (Brush)
ब्रुश कार्बन और आयताकार आकार में ताम्र की बनी होती है। इन बुशों को होल्डरों में लगाते हैं, जिसे ब्रुश होल्डर कहते हैं। ये बुश, स्टैण्ड पर ब्रुश योक की तरह लगते हैं।
ब्रुश गियर में ब्रुश योक, बुश होल्डर व बुश लगे होते हैं। ब्रुश का कार्य कम्यूटेटर से धारा को एकत्रित कर उसे बाहरी परिपथ में भेजना होता है।
ब्रुश कॉपर तथा कार्बन पदार्थ के बनाए जाते हैं परंतु अधिकतर ब्रुश कार्बन के बने होते हैं क्योंकि कॉपर की अपेक्षा कार्बन का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है जिसके कारण इसमें स्पार्क (spark) होने की संभावना कम होती है।
अतः बड़ी मशीनों में कार्बन ब्रुशों का उपयोग किया जाता है। कार्बन का प्रतिरोध ताम्र की अपेक्षा अधिक होता है जिससे स्फूलिंग नहीं हो सकती है और साथ ही कार्बन ब्रुश दिक्परिवर्तक के लिए स्नेहक (Lubricant) का कार्य करती है।
ब्रुश साधारणतया बक्साकार (Box Type) होल्डर में लगा दी जाती है जिसमें दिक्परिवर्तक के साथ सही सम्पर्क बनाए रखने के लिए स्प्रिंग दाब डाला जाता है और बुश का सम्बन्ध पिगटेल (Pigtail) संयोजन द्वारा बाह्य परिपथ के होल्डर से कर दिया जाता है।
7. बियरिंग (Bearing)
आर्मेचर शाफ्ट को देने के लिए या तो बियरिंग बॉल या बियरिंग काम आते हैं। बियरिंग को चलाने के लिए पूरा स्नेहक लगाया जाता है। बियरिंग प्रायः गन मेटल (Gun Metal) व बैबिट मैटल (Babymetal) से बनाई जाती है।
End Covers के बीचों बीच स्थित वह वलयाकार भाग, जिसमे Machine की धुरी घुमाती है बियरिंग कहलाती है। इसका मुख्य कार्य मशीन के स्थिर व घूमने वाले पार्ट्स के बीच घर्षण कम कर कटाव व घिसाव के कारण होने वाली हानियों से मशीन को बचाये रखना है।
8. स्टेटर (status)
स्टेटर मशीन का स्थिर भाग होता है इसके निम्न पार्ट होते हैं।
I- Yoke
यह डीसी मशीन का ढांचा होता है जो पूरे मशीन को पूरी मशीन को सुरक्षा प्रदान करता है और चुंबकीय फ्लक्स को भी पूरा करने के लिए मार्ग प्रदान करता है और यह पोल को भी थामें रखता है।
II- Pole
पोल को steel की एक से डेढ़ mm (1-1.5mm) मोटी पत्तियों को लेमिनेट करके बनाया जाता है पोल पर ही विद्युतरोधी कुण्डलन (insulated winding) होती है जिसमे एक्साइटिंग करंट प्रवाहित होती है।
III. Field winding
इसको पोल पर लगाकर पोल को एक्साइट करने के लिए किया जाता है इसे एक्साइटिंग बाइंडिंग भी कहते हैं।
IV. Pole Shoe
पोल शू का कार्य फील्ड बाइंडिंग को रोकने तथा आर्मेचर पर समान रूप से फ्लक्स को फैलाने का कार्य करती है।
उम्मीद हैं आपको DC Machine की जानकारी पसंद आयी होगी।
यदि आपको DC Machine की जानकारी पसंद आयी हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिए।