नमस्कार दोस्तो, आज के इस पोस्ट में हम Condenser के बारे में समस्त जानकारी पढेगे तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े।
पिछले पेज पर हमने Electric Flux की जानकारी शेयर की थी तो उस आर्टिकल को भी पढ़े।
चलिए आज की इस पोस्ट में हम Condenser की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।
कन्डेन्सर क्या है (Condenser In Hindi)
रेफ्रिीजरेशन सिस्टम के अन्दर कम्प्रैशर के बाद कन्डेन्सर का दूसरा नम्बर आता है। यह ज्यादातर स्टील का बना होता है। ये रेफ्रीजरेशन सिस्टम का भाग होता है जो कि रेफ्रीजिरेन्ट वाष्प को द्रव में परिवर्तित करता है।
इसमें उसकी क्रिटीकल (Critical) प्रेशर से ऊपर और उसके क्रिटीकल तापमान से कम पर गैस को कन्डेन्स किया जाता है। कम्प्रेश गैस कम्पैशर से प्राप्त होती है और उसके ताप को हटाकर द्रव बना दिया जाता है अथवा
Condenser दो Conducting Plates का एक Arrangement है, जो Insulating Materials से Insulte किये हुए रहते है। जो विधुत उर्जा को इक्कठा करता है, और जरुरत पड़ने पर Electrical Energy को Deliver भी करता है।
कन्डेसर का सिद्धान्त
माना कि दिये हुये चित्र में A बैट्री के धनात्मक सिरे को स्विच के धनात्मक सिरे से व बैट्री के ऋणात्मक सिरे को स्विच के ऋणात्मक सिरे से जोड़ते हैं।
फिर हम जैसे ही स्विच को चालू करेगें तो क्षणभर तो इलैक्ट्रोन चलेंगे और जब इलैक्ट्रोन चलेगें तब हम देखेंगे कि कुछ इलैक्ट्रान प्लेट A से निकलेंगे और प्लेट A धनात्मक रूप से चार्जड हो जायेगी और जब वह इलैक्ट्रान प्लेट B पर पहुचेंगे और इसको वे ऋणात्मक चार्जड कर देगें।
इलैक्ट्रोन का चलना ही प्लेटों को चार्ज करना है जिनका बाद में चलना बंद हो जाता है तब बैट्री का वोल्टेज और कन्डेसर का वोल्टेज बराबर हो जाता है।
अब हम कह सकते हैं कि कन्डेसर चार्ज है और उसमें एनर्जी इकट्ठी हो गयी है। अब यदि तार बैट्री से हटाकर आपस में मिला दी जाये तो स्पार्क होगा और ये धारा का उसमे होना सिद्ध करना |
Condenser के प्रकार
Condenser 3 प्रकार के होते है जो की इस प्रकार से है।
- एयर कूल्ड कंडेंसर (Air cooled condenser)
- वाटर कूल्ड कंडेंसर (Water cooled condenser)
- बाष्पीकरणीय कंडेंसर (Evaporative condenser)
1. एयर कूल्ड कंडेंसर ( Air Cooled Condenser )
एयर कूल्ड कंडेंसर एयर के द्वारा ठंडा करता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण घर का रेफ्रीजिरेटर है जिसमे कंडेनसर बाहर की ओर गर्मी निकालता है।
एयर कूल्ड कंडेंसर सबसे आसान कॉन्डेसर के प्रकार में से है क्योंकि इसे आप आसानी से साफ सुथरा रख सकते है। जिससे की इसका performance में लगतार स्थिरता होता है।
इस प्रकार के कन्डेंसर रेडियो रिसीवर में लगते हैं कि किसी प्रकार की ट्रांसमिशन वाइस को पकड़ने के लिए काम करते हैं (अर्थात टयूनिंग के लिए)।
इस प्रकार के कन्डेंसरों में कुछ पत्तियाँ अर्ध गोले के रूप में एक ही लोहे की छड़ पर फिक्स की होती हैं जिसको रोटर कहते हैं। कुछ पत्तियाँ स्थिर रूप में अर्ध गोले की शक्ल में होती हैं जिसको स्टेटर कहते हैं।
ये दोनों ऐसे रखे जाते हैं कि रोटर स्टेटर के बीच आसानी से घूम सकता है। ये एक-दूसरे से अलग रहते हैं यानी डाई-इलैक्ट्रिक हवा होती है।
इसकी कैपेसिटी पत्तियों के अन्दर बाहर आने से (स्टेटर ) कम अधिक होती रहती है। रोटर पर एक प्वांइट लगा देते हैं जो कि डायल पर प्लेटों के घूमने की दिशा बताता है। इस प्रकार के कन्डेंसरों की कैपेसिटी 0 से 500 Ufतक होती है।
2. वाटर कूल्ड कंडेंसर (Water cooled condenser)
वाटर कूल्ड कंडेंसर में पानी के द्वारा ठंडा किया जाता है इसका सबसे जयादा उपयोग स्विमिंग पूल में किया जाता है।
वाटर कूल्ड कंडेनसर को हमेशा पानी की जरुरत होती है और इसमें पानी बचाने के लिए कूलिंग टॉवर की भी आवश्यकता होती है।
वाटर कूल्ड कंडेंसर सबसे जयादा उपयोग किया जाने वाला विधि में से है क्योंकि ये दूसरी कंडेंसर के अपेक्षा थोड़ा सस्ता होता है।
3. बाष्पीकरणीय कंडेंसर (Evaporative condenser)
ये एक ऐसा कॉन्डेसर है जो पानी और हवा दोनों द्वारा ठंडा करता है इसका उपयोग वहां होता है जहा पानी की आपूर्ति अपर्याप्त होता है या कंडेंसशन टेम्प्रेचर कम हो जो एयर कूल्ड कंडेनसर द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
ये जयादातर HVAC में उपयोग किया जाता है। ये उतना efficient नहीं होता है इसीलिए इसका उपयोग बहुत कम होता है।
यह एक अधिक कैपेसिटी का बनने वाला कन्डेंसर है जिसकी कैपेसिटी 10 से 100 Uf तक हो सकती है। ये कन्डेंसर भी रेडियो या बिजली के काम में लाये जाते हैं।
Variable Air Condensor
इस प्रकार के Condenser में कुछ पतियाँ अर्धगोले के रूप में एक लोहे की छाड़ पर फिक्स्ड होती है, जिसको रोटर कहते है। कुछ पतियाँ स्थिर रूप में अर्धगोले के शक्ल में होते है।
जिसको Stator कहते है। ये दोनों ऐसे रखे जाते है, कि रोटर Stator के बीच आसानी से घूम सकता है। दोनों Plates एक दुसरे से अलग रहते है, जिनके बीच Air Dielectric का काम करती है।
इसकी Capacity पतियों के अन्दर बाहर आने से कम अधिक होती रहती है। इस प्रकार के कंडेनसर की Capacity 0 से 500uf तक होती है। इस प्रकार के कंडेनसर का उपयोग रेडियो Receiver में करते है।
Condenser की Capacity किन किन बातों पर निर्भर करता है।
- Plates के क्षेत्रफल के सीधे अनुपाती में Condenser की Capacity पर निर्भर करता है।
- Plates के बीच की दुरी के उल्टे अनुपात में Condenser की Capacity निर्भर करती है।
- Plates के बीच की इंसुलेशन के Dielectric Constant पर Condenser की Capacity निर्भर करती है।
यदि इंसुलेटर का Dielectric Constant अच्छा होता है, तो कंडेनसर की Capacity ज्यादा होगी और यदि इंसुलेटर का Dielectric Constant कम होता है। तो Condenser की Capacity कम होगी।
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