Alternator क्या होता है इसके प्रकार और सिद्धांत की जानकारी

नमस्कार दोस्तो, आज के इस पोस्ट में हम Alternator के बारे में समस्त जानकारी पढेगे तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े।

पिछले पेज पर हमने Active और Passive Component की जानकारी शेयर की थी तो उस आर्टिकल को भी पढ़े।

चलिए आज की इस पोस्ट में हम Alternator की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

अल्टरनेटर क्या होता है 

Alternator प्रत्यावर्ती धारा (AC) उत्पन्न करने वाला विद्युत जनित्र है वर्तमान समय में शक्ति उत्पादन केंद्रों पर सबसे ज्यादा उत्पादन अल्टरनेटर द्वारा किया जाता है यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है यह एक तुल्यकालिक मशीन है। 

अल्टरनेटर का परिचय

जैसे जैसे विद्युत् का प्रयोग बढ़ता गया, जनित्रों का आकार एवं जनित वोल्टता में भी वृद्धि होती गई। परंतु दिष्टधारा जनित्रों में, आर्मेचर घूमनेवाला होने के कारण उसके आकार में बहुत वृद्धि करना संभव नहीं था।

इसलिए उच्च वोल्टता जनित करनेवाले प्रत्यावर्ती धारा के जनित्र बनाए गए, जिनमें आर्मेचर स्थैतिक था और क्षेत्र परिभ्रमणशील।

वस्तुत:, वोल्टता जनन के लिए यह आवश्यक नहीं कि चालक ही चुंबकीय क्षेत्र में घूमे। घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र में स्थित चालक में भी वोल्टता प्रेरित होगी, क्योंकि इस दशा में भी वह चुंबकीय अभिवाह को काट रहा है।

अत: इस सिद्धांत पर, स्थैतिक आर्मेचर और परिभ्रमण क्षेत्र द्वारा वोल्टता जनित हो सकती है। यह वोल्टता प्रत्यावर्ती प्ररूप की होगी और आर्मेचर चालक तथा क्षेत्र की सापेक्ष स्थिति पर निर्भर करेगी।

एक बड़े पम्प का स्टेटर

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र, सामान्यत:, स्थैतिक आर्मेचर और परिभ्रमणशील क्षेत्र के सिद्धांत पर आधारित होते हैं। इनमें क्षेत्र चुंबक और कुंडलियाँ परिभ्रमणशील बनाई जाती हैं तथा आर्मेचर उनको बाहर से घेरे होता है। आर्मेचर में कटे खाँचों (slots) में चालक स्थित होते हैं।

आर्मेचर के स्थैतिक होने के कारण और बाहर की ओर होने से, उसका आकार काफी बढ़ाया जा सकता है, जिसका मतलब है, उसमें चालक संख्या काफी अधिक हो सकती है।

क्षेत्र वाइंडिंग सापेक्षतया छोटे होते हैं और उन्हें अधिक वेग पर घुमाया जाना, व्यावहारिक रूप में, कोई कठिनाई नहीं उत्पन्न करता। इन कारणों से प्रत्यावर्ती धारा जनित्रों में उच्च वोल्टता जनित करना संभव है और ये साधारणतया 11000 वोल्ट पर प्रवर्तित किए जाते हैं।

रोटर को डीसी देने की एक विधि ; लाल बक्से में दिखाया गया परिपथ शाफ्ट पर घूर्ण करता है।

अल्टरनेटर का तुल्य परिपथ

इन जनित्रों में बुरुशों के स्थान पर सर्पी वलय (slip rings) होते हैं, जो क्षेत्र कुंडलियों को उत्तेजित करने के लिए धारा पहुँचाते हैं। क्षेत्र के परिभ्रमणशील होने के कारण उन्हें दिष्ट धारा द्वारा उत्तेजन करना आवश्यक है।

उत्तेजन धारा या तो बाहरी स्रोत से प्राप्त की जाती है, अथवा उसी शाफ्ट पर आरोपित एक छोटे से दिष्ट धारा जनित्र से, जिसे उत्तेजक (Exciter) कहते हैं। उत्तेजन वोल्टता साधारणतया ११० अथवा २२० वोल्ट ही होती है। सभी बड़े जनित्रों में उत्तेजक द्वारा संभरण (सप्लाई) होता है, जिससे उत्तेजक के लिए अलग से दिष्ट धारा स्रोत की आवश्यकता न रहे।

प्रत्यावर्ती धारा जनित्रों को निर्धारित वेग पर ही प्रवर्तन करना होता है, जो उनमें जनित वोल्टता की आवृत्ति (frequency) एवं क्षेत्र ध्रुवों की संख्या पर निर्भर करता है। इसे निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है।

n = 120 f / p

यहाँ,

  • n = परिक्रमण प्रति मिनट,
  • f = आवृत्ति (चक्र प्रति सेकंड)
  • p = ध्रुव संख्या

इस प्रकार, 50 चक्रीय आवृत्ति के लिए चार ध्रुवी मशीन 1500 परिक्रमण प्रति मिनट के वेग से प्रवर्तन करेगी और दो ध्रुवी मशीन 3000 परिक्रमण प्रति मिनट के वेग से। यदि निर्धारित वेग एक समान रहा, तो आवृत्ति में अंतर आ जाएगा।

सामान्यत: विद्युत् संभरण निर्धारित वोल्टता और आवृत्ति के होते हैं। अत: आवृत्ति स्थिर रखने के लिए जनित्र का वेग एकसा न रखना आवश्यक है और यह वेग उसकी ध्रुवसंख्या के अनुसार निश्चित होता है।

भारत तथा दूसरे कॉमनवेल्थ देशों में विद्युतसंभरण की आवृत्ति सामान्यत: 50 चक्र प्रति सेकंड निश्चित है। अमरीका तथा दूसरे देशों में 60 चक्रीय आवृत्ति प्रयोग की जाती है। आवृत्ति के अनुसार विभिन्न ध्रुवों के जनित्रों का वेग भी निश्चित होता है, जिसे समक्रमिक वेग कहते हैं।

अल्टरनेटर कितने प्रकार के होते हैं

  1. आर्मेचर घूमने वाला अल्टरनेटर
  2. फील्ड घूमने वाला अल्टरनेटर

1. आर्मेचर घूमने वाला अल्टरनेटर

Alternator का घूमने वाला हिस्सा आर्मेचर या चुंबकीय क्षेत्र हो सकता है। परिक्रामी आर्मेचर प्रकार में रोटर पर आर्मेचर घाव होता है, जहां वाइंडिंग एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र के माध्यम से चलती है।

2. फील्ड घूमने वाला अल्टरनेटर

अल्टरनेटर का निर्माण एक स्थिर a.c. के साथ किया जाता है। घुमावदार और एक घूर्णन क्षेत्र प्रणाली। यह आवश्यक स्लिप-रिंगों की संख्या को दो तक कम कर देता है, और इन्हें उत्पन्न धारा के विपरीत केवल क्षेत्र-रोमांचक धारा को ले जाना होता है

अल्टरनेटर का इतिहास

Hippolyte Pixii और Michael Faraday ने सबसे पहले alternator का concept लाया था. उन्होंने एक rectangular rotating conductor design किया था एक magnetic field के भीतर ताकि वो alternating current पैदा कर सके outer static circuit के लिए।

J.E.H. Gordon ने सन 1886 में, एक ऐसे ही model को design और produce किया था जो की इसका पहला prototype था. एक model जो की था 100 से 300 Hz synchronous generator का उसे Kelvin और Sebastian Ferranti ने design किया था।

वहीँ सन 1891 में, Nikola Tesla ने एक commercially useful 15 Khz generator बनाया था. Poly Phase alternators उसके कुछ वर्षों के बाद commercialize हो गया जो की multiple phase currents प्रदान करने की क्षमता रखता है।

अल्टरनेटर का कार्य सिद्धांत 

अल्टरनेटर फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।            

जब रोटर को स्टेटर के बीच में घुमाया जाता है तो तो रोटर में उत्पन्न होने वाली मेग्नेटिक लाइन स्टेटर के कंडक्टर द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। जिससे फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम अनुसार स्टेटर की क्वाइल मे EMF पैदा होता है।

अल्टरनेटर dc जेनेरेटर की तरह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर ही काम करता है। डीसी जनरेटर और अल्टरनेटर में मुख्य अन्तर यह होता है कि डीसी जनरेटर में आर्मेचर घूमता है और मेग्नेटिक फील्ड स्थिर रहता है| जबकि अल्टरनेटर में उपरोक्त के बिलकुल उल्टा होता है|

अल्टरनेटर का स्टेटर कास्ट आयरन का बना होता है| जो कि आर्मेचर क्रोड को support करता है। स्टेटर के अन्दर आर्मेचर रखने के लिये slot बनी होती है। रोटर एक पहिये की तरह होता है जिससे उसके बाहर की ओर N तथा ऽ पोल फिक्स रहते हैं।

अल्टरनेटर का मेग्नेटिक फील्ड घुमने वाला होता है इसलिये करंट दो स्लिप रिंगों से होकर मेग्नेटिक फील्ड तक जाती है

जब रोटर घुमने लगता है तब स्टेटर का कंडक्टर स्थिर होने के कारण मेग्नेटिक फ्लक्स को कटता हैं| इस प्रकार स्टेटर में इंडक्शन के कारण वि. वा. बल (e. m. f.) पैदा होता है। मेग्नेटिक पोल N तथा S क्रम में होने के कारण आर्मेचर के कंडक्टर में वि. वा. बल उत्पन्न होता हैं जो कि पहले एक दिशा में तथा बाद में दूसरी दिशा में प्रवाहित होता है। इस प्रकार स्टेटर की क्वाइल में alternating e. m. f.) उत्पन्न होते रहता है|

Alternator के Main Components क्या है?

Alternator किसी भी गाड़ी का एक काफी ही Important Part होता है. जो की Car की Battery को Maintain करता है, Lights को Power प्रदान करता है।

साथ में Heater और दुसरे Accessories के लिए भी कार्य करता है। ये Generator के जैसे ही काम करता है और Electricity पैदा करता है Turbine System के जैसे. Car की 12-Volt Battery के पास इतनी Charge तो होती ही है जिससे Car को Start किया जा सकता है।

वहीँ बिना Alternator के, Battery को आसानी से Recharge नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके बिना उसे Manually हर समय Charge करना होगा जब आप Car को Restart करें तब. देखा जाये तो Alternator के बहुत से मुख्य Components होते हैं जो की अपना अपना कार्य करते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं ।

  1. ELECTROMAGNETS
  2. STATOR
  3. Rotor और Stator
  4. Diode Assembly
  5. Voltage Regulator

1. ELECTROMAGNETS

Alternators Electromagnets का उपयोग करते हैं Magnetic Field Create करने के लिए. Electromagnets उपयोग करते हैं Wire जिन्हें की Metal Piece के चारों तरफ Wrap किया जाता है। जब एक Electrical Current उस Wire के Through जाता है, तब वह Metal का Piece Magnetized हो जाता है।

कुछ Words के बारे में जो की Magnets से Associated हैं। Magnetic Field उस Field को कहा जाता है जो की Magnetic Substances के चारों तरफ Create होता है।

एक Magnetic Substance एक प्रकार का Material होता है जिसमें की Electrons को कुछ इसप्रकार से Orient किया जाता है जिससे ये ये दुसरे Metals को Attract कर सके  Tiny Particles से बने हुए होते हैं जिन्हें की Atoms कहा जाता है। Atoms में Electrons Nucleus के बाहर Spin कर रहे होते हैं।

Electrons Tiny Magnets के तरह होते हैं. ये Electrons हमेशा एक ही Direction में Spin करते हैं Alternator Kya Hai वो भी एक ही एक ही Certain Way में. Actually ये सभी अलग अलग Spin कर रहे होते हैं, लेकिन तब से Substance Magnetic नहीं होते हैं।

और जब ये एक ही Direction में Orient होते हैं तब ये Magnet के तरह Behave करते हैं Electromagnet में, जब Electrical Current Wire के Through Pass करता है, तब ये Metal के Electrons को एक ही समान Direction में Orient करते हैं, और आपको एक Magnet प्राप्त होता है।

2. STATOR

आपने अभी एक Rotor के Rotation, या Spins के बारे में जाना. ये Actually Stator के अन्दर ही Spin कर रही होती है, जो की एक Iron Core होता है जिसे तीन Coils Surround करती है. इन दोनों को एक दुसरे से Differentiate करना आसान है

जहाँ Rotor Rotate करता है वहीँ Stator Stationary होते हैं. ये Crankshaft Drive Belt को Rotate करने में आसानी प्रदान करती है, जिससे Stator के अन्दर स्तिथ Rotor Turn On हो जाता है। इसी Mechanical Energy के बारे में मैंने Lesson के प्रारंभ में बात की थी।

3. Rotor और Stator

ये rotor और stator किसी alternator के belt-driven group of magnets होते हैं जो की copper wiring के भीतर होती हैं और ये एक magnetic field create करती हैं।

ये belt को drive किया जाता है pulley के द्वारा जो की engine से connect हुआ होता है, और जो की allow करता है rotor को high-speed में spin करने के लिए, जिससे एक magnetic field create होती है।

फिर stator voltage और electricity पैदा करती है जो की flow होती है diode assembly में. इसमें जो electricity बनती है वो होती है alternate current, या AC

4. Diode Assembly

एक alternator की Diode assembly convert करती हैं AC electricity को direct current, या DC में, जो की वो current type होती है जिसे की car batteries में इस्तमाल किया जाता है।

ये diode assembly, एक two-terminal system होता है, जो की work करता है केवल electricity में जो की stator में पैदा होता है और इसे केवल एक ही direction में flow होने के लिए।

5. Voltage Regulator

ये Voltage Regulator alternator का surge protector होता है। Modern voltage regulators, जो की internal systems होते हैं।

वो monitor करते हैं दोनों alternator और battery voltage को, जिसके लिए ये केवल जरुरत के अनुसार ही current को adjust करती हैं। Older voltage regulators को externally mount किया जाता है।

जरूर पढ़िए :
Capacitor की परिभाषाTransistor की परिभाषा
MOSFET की परिभाषाVaristor की परिभाषा

उम्मीद हैं मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अल्टरनेटर का आर्टिकल आपके दोस्त के साथ में भी जरूर शेयर करें।

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